मर्मस्पर्शी हाइकुओं का संकलन है:
“शब्दों के पुल”
अभी एक सप्ताह पूर्व डॉ. सारिका मुकेश द्वारा रचित एक हाइकु संग्रह मिला,
जिसका नाम था “शब्दों
के पुल”। 83 रचनाओं से सुसज्जित 112
पृष्ठों की इस पुस्तक को जाह्नवी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका मूल्य रु.200/- रखा गया है। जनसाधारण की सोच से परे इसका आवरण चित्र Creative
Art ने तैयार किया है।
इस हाइकु संग्रह को आत्मसात् करते हुए मैंने महसूस किया है कि इसकी रचयिता डॉ. सारिका मुकेश अपने आप में एक शब्दकोष हैं। चाहे उनकी लेखनी से रचनाओं के रूप में क्षणिकाएँ निकलें या हाइकु निकलें वह अपने आप में किसी कविता से कम नहीं होती है।
कवयित्री ने अपनी बात में लिखा है-
“हाइकु स्वयं में एक कविता है। इसमें कहे से अधिक अनकहा होता है, जिसके अर्थ पाठक अपनी पैनी दृष्टि और सूझ-बूझ से खोजकर तराशता है। हाइकु
मूलतः प्रकृति से जुड़े रहे हैं परन्तु मनुष्य भी इसी प्रकृति का हिस्सा है और
वैसे भी साहित्य समाज का दर्पण है और समाज व्यक्ति/मनुष्य से
बनता है, सो मनुष्य की अनदेखी करना कदापि उचित नहीं होगा।
इसलिए मनुष्य को केन्द्र में रखकर खूब हाइकु लिखे जा रहे हैं।“
“जीवन जैसे
दूब की नोक पर
ओस की बूँद”
--
“क्यों भूले सत्य
भूल गये ईश्वर
अहंकार में”
कवयित्री ने अपने हाइकु संग्रह “शब्दों के पुल” का श्रीगणेश वन्दे चरण से किया
है-
“वन्दे चरण
तुझको समर्पण
श्रद्धा सुमन”
--
“ओ मेरे कान्हा
रँग दे चुनरिया
अपने रँग”
--
उम्र तमाम
बसो मेरे मन में
ओ घनश्याम”
महाभारत के परिपेक्ष्य में कवयित्री ने नारी की स्थिति पर प्रकाश
डालते हुए कुछ इस प्रकार से हाइकुओं में बाँधा है-
“महाभारत
अन्याय के खिलाफ
बिछी बिसात”
--
पाँच पाण्डव
औ’ अकेली द्रोपदी
करती तृप्त”
--
स्त्री की नियति
कभी अंकशायिनी
तो कभी जूती”
प्रकृतिचित्रण में भी डॉ.सारिका
मुकेश की कलम अछूती नहीं रही है। संध्याकाल को उन्होंने अपने हाइकुओं में शब्द
देते हुए लिखा है-
“दिन में थक
समुद्र की गोद में
छिपता सूर्य”
--
“लौटते पंछी
अपने घोंसले में
बच्चों के पास”
--
“हसीन शाम
उतरी धरा पर
छलके जाम”
आयु की शाश्वत परिभाषा कवयित्री ने “उम्र और हम” शीर्षक से कुछ इस प्रकार दी है-
“उम्र की गाड़ी
दौड़ती प्रतिपल
मृत्यु की ओर”
--
“उम्र बढ़ती
घटती प्रतिपल
यह जिन्दगी”
--
“जन्मदिन क्यों?
होता एक बरस
आयु का कम”
डॉ.सारिका मुकेश ने अपने हाइकु संग्रह “शब्दों के पुल” में रोजमर्रा की चर्या में पाये
जाने वाले आशा-प्रत्याशा, सोचता मन, मित्र,
पंछी,आकांक्षा, सूरज,
पानी पर लकीरें, आदमी, आँसू,
अज्ञानता, विसंगति, तूफान,
परिवर्तन, बेवफाई, विदा,
रामायण, राजनीति, जीवनसंध्या,
नारी आदि विविध विषयों पर अपनी सहज बात कही है।
अन्त में इतना ही कहूँगा कि डॉ. सारिका मुकेश बहुमुखी
प्रतिभा के धनी हैं और उनकी हाइकुकृति “शब्दों के पुल” एक पठनीय ही नहीं अपितु संग्रहणीय काव्य पुस्तिका है।
मेरा विश्वास है कि “शब्दों के पुल” हाइकुसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों के दिल को छूने में सक्षम है। इसके
साथ ही मुझे आशा है कि यह हाइकु संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध
होगा।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
(डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262
308
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-07417619828
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Sunday, 26 January 2014
'शब्दों के पुल' की समीक्षा
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