जीवन की धूप और छाँव है
'शब्दों के पुल'
दोस्तों...आज ही 'सारिका मुकेश' जी की लिखी नई पुस्तक 'शब्दों के पुल' (प्रकाशक-जाह्नवी प्रकाशन, दिल्ली) प्राप्त हुई है. हिन्दी कविता में नवीन प्रयोगवादी कवियों के द्वारा जापान से जिस नई विधा ' हाइकु' का पदार्पण हुआ, उसी विधा में यह पुस्तक अपने रंग बिखेरती है .
अपनी भावनाओं को कम से कम शब्दों में सार्थकता से पिरोना काफी कठिन है परन्तु सारिका मुकेश जी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इस विधा को नए आयाम प्रदान किये है. जहाँ उनके कुछ हाइकु परंपरागत कविता को नई दिशा प्रदान करते है वही दूसरी और कुछ हाइकु मानव स्वभाव का सफल चित्रण करते प्रतीत होते है.
कुल मिलाकर जीवन की धूप और छाँव, दोनों को, मात्र तीन पंक्तियों में बांधकर सारगर्भित रूप से प्रस्तुत किया गया है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. इस सफलता पर मेरी और से उन्हें बहुत बहुत शुभकामनाएं.
आशा है कि भाविष्य में भी वे इस प्रकार के नवीन प्रयोगों से कविता को ऊँचाइयाँ प्रदान करेंगे......
उनकी पुस्तक 'शब्दो के पुल' से कुछ हाइकु –
पूरब दिशा,
प्रातः हो उठी लाल,
निकला सूर्य.
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ठगता रहा,
माया का संसार,
जन्मों-जन्मों से
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चलती यादें
मस्तिष्क पटल पे
चलचित्र सी
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लगे अक्सर
आ पहुंची निकट
जीवन संध्या
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पूरब दिशा,
प्रातः हो उठी लाल,
निकला सूर्य.
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ठगता रहा,
माया का संसार,
जन्मों-जन्मों से
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चलती यादें
मस्तिष्क पटल पे
चलचित्र सी
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लगे अक्सर
आ पहुंची निकट
जीवन संध्या
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---एक बार फिर से सारिका मुकेश जी को बहुत बहुत बधाई...
-देव निरंजन
(लेखक एवं कवि)
देवास (म.प्र.)
21 जनवरी 2014
बहुत सुंदर समीक्षा !
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