Sunday 22 April 2012

हिंदी हाइकू और अन्य कविताएं


रोज बेधती
पुरूषों की दृष्टि
नारी तन को

तुमने ही तो
समझा बगाना-सा
हमको सदा

दक्षिण जा के
उत्तर के त्यौहार
दम तोड़ते

नहीं अपना
रिश्तेदार, कोई खास
ज्यों बनवास  

नहीं अपना
रिश्तेदार, कोई खास
जीओ बिंदास

पिया-पिया की
मन करे रटन
पपीहा बन     

माँ से मिल के
यूँ खिल उठा बच्चा
जैसे कमल

फैला ज़हर
सांप्रदायिकता का
नेता ले मौज़    

भूखे ही पेट
दिखाता खुशहाली
ओ चित्रकार

मिली कान्हा से
सब कुछ तज़ के
मीरा दीवानी

मैं रंग जाऊँ
बस तेरे रंग में
ओ घनश्याम

यूँ बनो बडे़
भूले नहीं कान्हा को
मित्र सुदामा

मैं रंग जाऊँ
बस तेरे रंग में
मेरे मुरारी

पाँच पाँडव
अकेली द्रौपदी
करती तृप्त

अब तो सारे
पर्व करें निराश
ना कोई आस

अब तो सारे
पर्व करें निराश
ना कोई पास
                                   
ओ हमदम
तुम ऐसे बिछुडे़
फिर ना मिले

दुग्ध-धारा में
लगता ऐसे मानो
गिरता दूध

दुग्ध-धारा में
मनमोहक दृश्य
हैं चारों ओर

उम्र का स्यापा
लो आ गया बुढ़ापा
हो बुरा आपा

खूब करेंगे
हम हँसी-ठिठोली
आई रे होली

भूखे ही पेट
रंगों का खेला खेल
यूँ मनी होली

माँ सरस्वती
सदा कर निवास
तू मेरे पास

लक्ष्मी की कृपा
रहे यूँ सालो-साल
हो मालामाल

दीपावली पे
लक्ष्मी घर पे आतीं
मन हर्षातीं
  
रूप सलौना
करता आमंत्रित
दुराचार को

माँ की गोद में
खिलखिलाता बच्चा
जैसे कमल

माँ की गोद में
बच्चा यूँ मुसकाता
जैसे कमल

दक्षिण में पडे़
अक्सर यूँ लगे हो
ज्यों बनवास

पकते फल
निशाना लगाने को
पुकारते-से

बच्चा करता
ज़िद चाँद छूने की
बचपन में

बच्चन लिखें
मिटते भेद भाव
मधुशाला में

राजनीति तो
यूँ  हो गई विषैली
भाई ने जाँ ली

यूनिवर्सिटी
से बाहर खेलते
क्यों होली बच्चे

आती जो होली
खूब करते
हम हँसी-ठिठोली

माँ सरस्वती
जब कृपा करती
आगे बढ़ती

अब के वर्ष
गणपति बाबा मोर्या
तू जल्दी आ

अन्य कविताएं

कविता बही
लेखक के मन से
काग़ज़ पर
कविता चली
लेखक के मन से
पाठक तक

कविता बेटी
लेखक के मन की
होकर के जवान
चली पाठक के आँगन 



No comments:

Post a Comment